पति-पत्नी में तनावों के प्रमुख कारणों में धन की कमी और धन की अधिकता का बराबर महत्त्व है। धन को यदि तनावों की धुरी कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। पंजाबी में एक कहावत है, जिनके घर दाने, उनके कमले भी सयाने। कहने का आशय यह है कि जो धनी हैं, वे भले ही पागल हों, लेकिन उनका पागलपन भी धन के प्रभाव में छिप जाता है, लेकिन जहां तक दांपत्य संबंधों का प्रश्न है, इन पर धन का प्रभाव उतना अधिक नहीं पड़ता। यद्यपि भौतिकवादी संसार में धन के प्रभाव ने जीवन मूल्यों को भी प्रभावित किया है और मनुष्य को अंधा बना दिया है, जो रात-दिन निन्यानवे के चक्कर में ही पड़ा रहता है और उचित-अनुचित सभी साधनों से पैसा कमाना चाहता है। ऐसे लोग भी सुखों का साधन धन को मानते हैं। यह एक वास्तविकता है कि धन सभी सुखों का साधन कभी नहीं रहा है।
इस संदर्भ में तसलीमा नसरीन ने मुनमुन सरकार से अंतरंग बातचीत में यह पूछने पर कि आपके मन में सुख की अवधारणा क्या है? बताया, किस चीज को आप सुख के रूप में देखती हैं? उनका कथन था कि सुख एक सापेक्षिक स्थिति है, रिलेटिव मामला है। जैसे बचपन में मैं कोई खिलौना पाकर सुख का अनुभव करती थी, लेकिन अब वैसा नहीं होता है। किसी को गाड़ी वगैरह मिल जाने पर सुख मिलता है, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं होता।
मुझे एक अच्छी किताब से भी सुख की अनुभूति होती है। दरअसल जीवन के विभिन्न चरण बदलते रहते हैं। कभी मैं शरत्चन्द्र की कोई पुस्तक पाकर बहुत खुश होता था, लेकिन अब शायद मिले, तो उसे किनारे रख दूं। यानी अब मेरे लिए वह सुखकर नहीं है। समय के साथ-साथ सुख भी बदल रहे हैं।
इस प्रकार से यदि युवा पति-पत्नी सोचें कि धन ही सबसे बड़ा सुख है, तो यह धारणा उनके लिए नितांत गलत, भ्रामक और झूठी है। हर चीज की अधिकता तनाव का कारण है। पति-पत्नी के संबंधों में भी यही बात चरितार्थ होती है। इस प्रकार सुख के मापदंड भी अलग-अलग होते हैं, जो धन, यश की प्राप्ति के साथ-साथ बदलते रहते हैं। इसलिए पति-पत्नी, दोनों ही वास्तविक स्थिति में खुश रहें, यही उनके लिए सार्थक व्यवहार है।
कुछ पति-पत्नी इन भौतिक सुखों की खातिर अपने संबंधों की परवाह नहीं करते, वे ज्यादा परेशान रहते हैं। उनके द्वारा मानसिक और शारीरिक रूप से कम दक्ष होने के कारण धन कमाना कठिन हो गया है। वे धन के अभाव में ऐसी स्थिति में गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हैं। यहां का रहन-सहनदेखकर लगता है कि ऐसे स्थान रहने के योग्य नहीं हैं, परंतु क्या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले पति-पत्नी, अन्य दंपतियों की तरह सुख से नहीं रहते? एक तरफ तो धन की अधिकता के कारण धनी परिवार और उनमें रह रहे पति-पत्नी तनावग्रस्त हैं, तो दूसरी ओर झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले पति-पत्नी सुख की नींद सो कर खुश हैं।
शुरू करते धन का एक ऐसा कुचक्र है, जो समाज में अनेक बुराइयों को पैदा करता है, लेकिन वास्तव में ये बुराइयां भी समाज में हमेशा विद्यमान रहती हैं। जब पति-पत्नी धन के कारण उपजने वाले तनावों को लेकर अपनी जिंदगी हैं, तो जहां भौतिकवाद सब प्रकार की सुविधाएं प्रदान करता है, वहीं उन्हें मानसिक रूप से एक सीमा तक संतुष्टि भी देता है, लेकिन तनाव पति-पत्नी की सबसे बड़ी समस्या है। ‘इंडिया मोस्ट वांटेड' धारावाहिक के निर्माता शुएब इलियासी की पत्नी अंजू इलियासी की हत्या या आत्महत्या, इस बात का प्रमाण है कि पति-पत्नी में धन की अधिकता तनाव का एक ऐसा कारण था, जिसके परिणाम बड़े गंभीर निकले।
धन के लालच में अनेक लड़कियों को जला दिया जाता है। भौतिकवाद ने पति-पत्नी के सुख तो छीने ही हैं, साथ ही बच्चों से उनके संरक्षक भी छीने हैं। धन की अधिकता के कारण पति-पत्नी की सोच में जो अंतर आ रहे हैं, वे उन्हें पतन के इतने गहरे गड्डों में डाल रहे हैं, जहां से न केवल निकलना कठिन होता जा रहा है, बल्कि निकलकर भी उन्हें तनावों के सिवाय कुछ नहीं मिलता।
अमेरिका के प्रसिद्ध पत्रकार और विश्व राजनीति के प्रभावों को देखने वाले विचारक डेविड एकमन का कथन है कि मनुष्य इसलिए दुःखी, संतप्त और तनावग्रस्त है, क्योंकि मानव मूल्यों का निरंतर ह्रास हो रहा है, जबकि मानव मूल्यों के प्रति लगातार प्रतिबद्धता ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। उनका विचार है कि उच्च चरित्र और योग्यता दो भिन्न-भिन्न विचार हैं। मानव मूल्यों की उच्चता को पा लेना ही प्रखर व्यक्तित्व है। व्यक्तित्व की इस प्रकार की महानता ही पति-पत्नी में तनावों को कम करती है।
समाधान
1. पति-पत्नी
को यह समझना चाहिए कि दांपत्य संबंधों में धन को कहीं भी मार्ग में न आने दें। जितना है, जैसा है, जो सुलभ है, उसका उपयोग करें और उसी में संतुष्ट होकर देखें, सुख स्वतः अनुभव होने लगेगा।
2. धन
की कमी अथवा अधिकता दोनों में ही दोष है। इसीलिए भारतीय जीवनादर्श है कि 'साईं
इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।' कबीर
जैसे फक्कड़ विचारक ने समाज के सामने यह आदर्श रखा। वास्तव में पति-पत्नी में इस प्रकार की सीख ही
उनके दांपत्य जीवन में सरसता के स्रोत पैदा कर सकती
है।
3. धन
की अधिकता पति-पत्नी में 'खट-पट' का
कारण है। भौतिक साधनों,
ग्लैमर, फैशन और तड़क-भड़क की कोई सीमा नहीं। इसलिए अपनी सोच को उस ओर न ले जाएं। सादगी अपने आप में एक आदर्श है। वह हर
सीमा में है, जबकि
फैशन की कोई सीमा नहीं। हर रोज फैशन बदलते हैं, डिजाइनिंग बदलती हैं, आप कहां-कहां तक धन की पूर्ति
करेंगे। पति-पत्नी चाहे कितने ही साधन
संपन्न क्यों न हों, वे हर चीज़ की पूर्ति तो कर ही नहीं सकते।
धन की प्यास कभी नहीं बुझती, वह उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है। जैसे शराब पीने के बाद तलब बढ़ती जाती है। उसी प्रकार से धन की इच्छा और
लालसा भी बढ़ती
जाती है। वास्तव में यह एक ऐसी
मृगतृष्णा है, जिसकी पूर्ति हो पाना असंभव है।
4. सभी
प्रकार के यौन रोग धन की अधिकता के कारण पनपते हैं और ये उन्हीं में होते हैं, जो
धन का उपयोग ‘ऐसे' कार्यों में करते हैं।
5. जो
पति-पत्नी धन कमाने के अनुचित साधन अपनाते हैं, उनके
दांपत्य जीवन में तनाव और टकराव पैदा हो जाते हैं।
6. धन
लक्ष्मी का रूप है, इसलिए इसका अपमान न करें। इसकी कद्र करेंगे, तो यह आपकी कद्र करेगी।
7. धन
का प्रदर्शन न करें, बल्कि इसे अपनी गरिमा के अनुरूप खर्च करें। यह आपकी मान-प्रतिष्ठा बढ़ाएगा। धन की पूजा पत्नी के
द्वारा कराएं। इससे
लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
8. धन
के अभाव को अभिशाप न समझें। धन का अभाव तो आपको हमेशा संघर्षरत रहने की प्रेरणा देता है। आपको
क्रियाशील व मेहनती बनाता है, जो चरित्र के उत्तम गुण हैं।
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