हममें से कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने बचपन में लालटेन से पढ़ाई की होगी। हमारे आस-पास भी कई बच्चे ऐसे पढ़ाई करते दिख जाते है। रिक्शे पर बैठकर पढ़ाई करता बच्चा हमें उम्मीद की एक किरण दिखाता है। बच्चे को देखकर हम सीख सकते हैं कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, अगर इंसान कुछ करना चाहता है तो उसके लिए गरीबी मायने नहीं रखती है। हो कहीं भी लेकिन आग जलनी चाहिए । हमेशा याद रखिए कि-
"पढ़ाई ही है, जो हमें श्रेष्ठ बनाता है."
एक ग्राम में एक किसान रहता था। वह बहुत गरीब था । उसका एक बेटा था। किसान का नाम दीनानाथ और उसके बेटे के नाम राजू था। दीननान्थ के पास अपने बेटे को महगें और प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने अपने बेटे राजू का नाम अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय में लिखवा दिया। क्योंकि सरकारी स्कूलों में कोई फीस नहीं लगती है इसलिए उन्होंने राजू का नाम सरकारी स्कूलों में लिखवा दिया। राजू पढ़ने में बहुत होशियार था। इसलिए कक्षा में शीर्ष आता था। राजू ने अपने गांव से ही कक्षा 8 की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह कक्षा 8 में प्रथम आया।
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राजू के पिता ने राजू का मन पढाई में देखते हुए उसे आगे पढ़ाना चाहा इसलिए उन्होंने गांव से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर दूसरे गांव में एक स्कूल सरकारी थी, जो कक्षा 12 तक थी। उसमें राजू का नाम लिखवा दिया। वहां से राजू ने कक्षा 12 की परीक्षा उत्तीर्ण की। राजू के पास आगे पढ़ने के लिए और पैसे नहीं थे, और उसके माता-पिता भी बूढ़े हो गए थे। इसलिए राजू ने सोचा था कि क्यों ना अब हम शहर जा कर कोई काम करें जिससे हमारा खर्चा तो चलता रहे। यह सोचकर राजू अपने माता पिता की आज्ञा लेकर शहर चला गया। और शहर में एक सेट के यहां नौकरी करने लगा।
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राजू को उस सेठ के यहां एक से डेढ़ साल काम करते हुए हो गया था । एक दिन की बात राजू से कुछ गलती हो गई जिसकी वजह से राजू को उसके सेठ ने बहुत डांटा और उल्टा सीधा सुनाया उसके बाद राजू को गाल पर थप्पड़ भी जड़ दिया।
उस सेठ का उल्टा सीधा बोलना और थप्पड़ मारना राजू को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा । इसलिए उस रात राजू रात भर ऐसे ही बैठा रहा। उस रात मे यह सोच रहा था कि अगर मेरे पास पैसे होते हैं तो मैं क्यों सेठ के यहाँ काम करता । उसने मन में ठान ली कि जितने भी सेठ जी से पैसे मिलेंगे उन पैसों की केवल किताब खरीदूंगा और उन किताबों से मन लगाकर पढ़ाई करुंगा, जब तक मुझे नौकरी न मिल जाये ।
दूसरे दिन राजू ने सेठ से अपना सारा हिसाब करवाया और घर आ गया, शहर से वह अपनी पढ़ाई की सब किताबें भी ले आया और उसने मन लगाकर रात दिन पढ़ाई शुरू कर दिया । उसके बाद जब आईएएस बनाने का फॉर्म तो उसने आईएएस का फॉर्म डाल दिया। 6 महीने बाद उसका कॉल लेटर आया और उसने एग्जाम दिया। जिसमें वह पास हो चुका हो गया और फिजिकल टेस्ट देकर डीएम की ट्रेनिंग पर चला गया।
राजू उस शहर में डीएम बना, जिस शहर में वह सेठ जी के पास नौकरी करता था । एक दिन की बात सेठ जी को डीएम से कुछ काम आया और वह डीएम से मिलने के लिए आया। डीएम की कुर्सी पर उस लड़के को देख जो उसके यहां काम करता था । सेठ हैरान रह गए और उसके हाथ लड़खड़ा भी लगे। यह देखकर राजू ने उस सेठ जी को बैठाया और कहा कि मैं आज जो कुछ भी हूं, आपके उस थप्पड़ की वजह से हूं। आपने हमें उस गलती पर मुझे मारा था. अगर आप उस दिन हमें थप्पड़ ना मारते तो हमें पढ़ने की उम्मीद न होती और हम आप के यहाँ आज भी नौकरी ही कर रहे होते। उस दिन के थप्पड़ से हमें लगा की हमे मन लगाकर पढ़ना चाहिए और हमने ऐसा ही किया और हम आज सफल हो गए और डीए बन गए।
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एक गरीब छात्र की सफलता की कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास किया कि एक छात्र अपनी बुद्धिमानी और दृढ़ निश्चय से गरीब छात्र से सफल छात्र बना दिया। यह कहानी गरीब छात्र की सफलता की कहानी है। जो छात्रों के स्वच्छ और सुंदर भविष्य को दर्शाती है कि छात्र अपने मार्ग में आने वाली हर रुकावट से कैसे छुटकारा पा सकता है और उसे पार करके सफल बन सकता है।
हमारी जिन्दगी का दूसरा नाम ही मुसीबत है। हमारे जीवन में मुसीबतें आती ही रहती है। कोई इन मुसीबतों से हार मान लेता है तो कोई इसका डट कर सामना करता है। बहुत से लोग इन मुसीबतों से टूट जाते है जिससे उन्हें मोटिवेशन जरूरत पड़ती है। जिसके कारण वह इन मुसीबतों का बिना किसी डर से सामना कर सके ।
याद रखिये चाहे आप चाहे आप अमीर हो या गरीब जब तक कुछ करने की आग दिल में न उठे तब तक सफलता हाँथ नहीं मिलने वाली है। इसीलिए तो कहते है कि हो कहीं भी बस आग जलनी चाहिए। आर्टिकल अच्छा लगे तो शेयर जरूर करें।
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