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खुशहाल जीवन के रहस्य Part-1/ दिखावे में बिगड़ता बजट /Recipe for Happy Life/Secret of Happy Life Part-1

दिखावे में बिगड़ता बजट /Dikhaave Mein Bigadata Bajat.

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दोस्तों आपने अंग्रेजी में एक कहावत तो सुनी ही होगी "Cut your coat according to your cloth" और इसी को हिंदी में कहते है "उतना ही पैर फैलाइए, जितनी लंबी चादर."  लेकिन इन सब के बाद भी लोग शादी-विवाहों में इतना अधिक खर्च करते हैं कि शादी-विवाह पर किया हुआ खर्च न केवल उन्हें कर्ज़दार बना देता है, बल्कि तनाव भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर देता है।

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बड़े-बड़े मॉल में घूमने जाना , लोन लेकर महंगी गाडी खरीदना , लोन लेकर बड़ा सा घर लेना।  ये सब उन्हें बस चक्रव्यूह में फ़ासते चले जाते है।  हैसियत से ज्यादा महंगी गाड़ी वो भी सिर्फ पडोसी या अपने जूनियर को दिखने के लिए।  घर में कोई आये तो ये न कहे की इनकी टेलीविज़न छोटा है या फिर सोफे छोटे है इससे बचने के लिए क़र्ज़ लेकर महंगे सामान खरीदना और बाद में पैसे के लिए परेशान रहना ये कहाँ की बुद्धिमानी है।  

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मैंने वर्तमान सामाजिक परिवेश में कुछ ऐसे ही परिवारों के अंदर झांकने का  प्रयास किया है, जिनकी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया हो। ऐसे परिवारों की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति बहुत दिनों तक अच्छी नहीं रह पाती है। ऐसे परिवार अपनी झूठी शान-शौकत और दिखावे के चक्कर में शादी-विवाह के अवसरों पर इतना अधिक खर्च करते हैं कि बहुत जल्द ही उनकी असलियत समाज और परिवार के सामने आ जाती है। ऐसी स्थिति में न केवल घर वाले, बल्कि बाहर वाले भी उन्हें इस स्थिति के लिए दोषी ठहराते हैं। समाज में शादी-ब्याह पर होने वाले भारी भरकम खर्चों की पूर्ति लोग अपनी जमीन-जायदाद तक गिरवी रखकर पूरा करते हैं। वास्तव में वे इस प्रकार के खर्चे दूसरों की देखा-देखी में ही करते हैं। ऐसे अनाप-शनाप खर्चे पति-पत्नी की जिंदगी पर निश्चित ही एक अतिरिक्त बोझ साबित होते हैं।

यदि विवाह लड़की का होता है, तो उसे दहेज में इतना अधिक खर्च करना पड़ता है कि उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। यदि विवाह लड़के का होता है, तो उसे अपनी 'नाक ऊंची' करने के लिए कई प्रकार के गहने,जेवर आदि बनवाने पड़ते हैं। दोनों ही स्थिति में परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है। इस प्रकार के आर्थिक दबावों से परेशान लड़के-लड़की के मन में अपने विवाह के कारण तनाव उत्पन्न होने लगते हैं, जिससे वे भविष्य  में भी जल्दी 'सामान्य' नहीं हो पाते। 

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सबसे बड़ी बात तो यह होती है कि अपनी हैसियत से अधिक किया गया खर्च भी शादी की सफलता की कोई गारंटी नहीं देता है। इस प्रकार के खर्चों के बाद भी लड़के वाले कभी दहेज से संतुष्ट नहीं होते है । उसे तरह-तरह के तानों-उलाहनों से जलील किया जाता है। आखिर लड़की भी कब तक सहन कर सकती है, उसे कोई उत्तर तो देना ही पड़ता है, जबकि उसका जवाब ही उसके दांपत्य जीवन पर प्रश्न-चिह्न बनकर उभरने लगता है। 

‘जबान लड़ाती है..., एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी...अगर साड़ी पहनने और सजने-संवरने का इतना ही शौक था, तो बाप से कहती कि...।' इस तरह के ताने मिलने शुरू हो जाते है और फिर कभी न खत्म होने वाले तनाव इसी प्रकार के खर्चों के कारण पति-पत्नी को सहने पड़ते हैं। दोनों तरफ का खिंचाव पति-पत्नी के संबंधों पर पड़ने लगता है। वास्तव में इस प्रकार के खर्चे के लिए लड़के-लड़की की तरफ से कोई जोर नहीं दिया जाता और न ही इसकी पहल लड़के-लड़की की तरफ से होती है। ज्यादातर लोग सिर्फ अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर खर्च करते हैं। 

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आजकल एक नई प्रथा प्रारंभ हो गई है कि लड़के-लड़की को 'हनीमून' मनाने के लिए लोग 'इधर-उधर' भेजने लगे हैं। वास्तव में इस प्रकार के हनीमून मनाने के लिए एक ही भावना होती है कि लड़का-लड़की एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लें, क्योंकि इस प्रकार से उत्पन्न समझ उन्हें एक-दूसरे के करीब लाएगी,लेकिन युवा लड़के-लड़की इस समय का उपयोग भी केवल सेक्स संबंधों के लिए करते हैं, अन्य दूसरी बातें दरकिनार कर दी जाती हैं। यही कारण है कि हनीमून से लौटने के बाद कुछ असंतुष्ट लड़के-लड़की एक-दूसरे से दूर-दूर होने लगते हैं। उनके चेहरे से देखने पर सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी शादी की कोई खुशी नहीं। 

वास्तव में शादी के बाद की आत्मिक खुशी तो लड़के-लड़की की आंखों में अलग ही दिखाई देती है। पति-पत्नी शादी में हुए खर्चों के तनावों से ग्रसित होकर प्यार-मोहब्बत की बातें भूलकर रात-दिन इसी चिंता में रहते हैं कि कहीं उनके भैया-भाभी इन खर्चों के कारण ताना न मार दें। कहीं पिताजी को यह पता न चल जाए कि उसने अपनी नई पत्नी की इच्छा पर कितना खर्च कर दिया है। हनीमून के लिए होटल में ठहरे हुए पति-पत्नी भी इस तनाव से ग्रसित रहते हैं कि कल तक यह कमरा छोड़ना पड़ेगा, नहीं तो परसों का बिल उनके नाम और जुड़ जाएगा। 

इसका मतलब सिर्फ यह है कि इस प्रकार के खर्च पति-पत्नी के लिए एक ऐसा चक्रव्यूह साबित होता है, जिसमें फंसकर वे दोनों जीवन की रंगीनियों को भूल जाते हैं , अपने जीवन का आनंद लेना भूल जाते है , उनकी खुशहाल जिंदगी में गम अपना स्थान लेने लगता है और जल्दी ही 'आटे दाल' के भावों से परेशान होने लगते हैं।

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यदि लड़का अथवा लड़की कामकाजी हुए या बड़े उद्योगपति हुए, तो हनीमून जाने के बाद भी फोन पर उन्हें चेतावनी मिलती रहती है कि केवल दो दिन की और छुट्टी है या फिर अमुक का पेमेंट समय पर होना जरूरी है। ऐसे में पति-पत्नी की स्थिति हनीमून के इस समय में बिल्कुल वैसी ही होती है, जैसे किसी कैदी से जेल का सिपाही यह कहता है, मिलने का समय समाप्त हो गया, वापस चलो।

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समाधान

दोस्तों कुछ सुझाव रूप में बातें आगे लिखने जा रहा हूँ जिसे अपनाकर अपने जीवन को कुछ हद तक खुशहाल बना सकते है। 

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  • शादी एक-दूसरे के मिलन का संयोग है, उसे दिखावा अथवा प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं और न बनने दें।आवश्यकता से अधिक खर्च कर लड़के-लड़की को उपहार में तनाव न दें.
  • अच्छा हो, यदि आप सादगीपूर्ण किसी अच्छे समारोह में शादी की घोषणा करें और फिर शालीनता या किसी ऐसे ही अन्य अवसर पर शादी संपन्न कर लड़के-लड़की को स्नेह भरा आशीर्वाद दें। लोगों को सादर आमंत्रित करें कि वे भी इन्हें आशीर्वाद दें।
  • लड़के-लड़कियों को मां-बाप के सामने स्पष्ट रूप से फिजूलखर्ची के लिए असहमति प्रकट करनी चाहिए और दहेज का भी विरोध करना चाहिए। यदि कोई दहेज की मांग करता भी है, तो उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को और कम आंका जाना चहिये । 
  • कुछ इसी प्रकार की सोच इस विषय में लड़के-लड़कियों को तनावमुक्त करेगी, शादी-विवाह पर होने वाले खर्चों को कम करेगी।
  • दूसरे को दिखाने के चक्कर में अपने खर्चे बढाकर अपने पैर में कुल्हाड़ी न मारें। 
  • दिखावे की जिंदगी न जी कर एक खुशहाल जिंदगी को जीने  प्रयास करें।  अपने घर के सदस्यों को बारें में जरूर बताएं। 

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