जब हम किसी काम को पूरी मेहनत से करते है, परन्तु किसी कारण से उसका परिणाम जब हमारे अनुकूल नहीं होता, तो हम बिलकुल निराश हो जाते है। हम ये सोचने लगते है की कितनी मेहनत से इस काम को किया था, जिसमे असफल हो गए। जिस कारण से कई लोग तो निराश होकर पूरी जिंदगी अंधेरे में धकेल देते है, जबकि वही दूसरी तरफ जो लोग आशावादी प्रवृत्ति के होते है, असफलता के बाद भी सफलता की आशा के साथ कदम आगे बढ़ाते रहते है,और सफलता हासिल करते है। दोस्तों क्या आपकी निराशा से वो असफल काम सफल हो जायेगा? जी बिलकुल नहीं। जब ऐसा नहीं होगा तो हम इतने निराश क्यों हो जाते है ? क्यों नहीं हम दोबारा अपनी ग़लतियों को सुधार कर एक बार पुनः काम को नए सिरे से शुरू करें और सफल हो जाये।
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आप ने देखा होगा जब आपके इलाके में चुनाव का समय होता है, तो कितने ढेर सारे कण्डीडेट्स चुनाव में खड़े होते है, और पूरी ताकत से प्रचार करते है, लेकिन क्या सभी सफल हो पाते है? सिर्फ एक ही विजेता बनता है। तो क्या अगले वर्ष वह हारा हुआ कंडीडेट चुनाव नहीं लड़ता ? कुछ कंडीडेट होते है, जो निराश होकर नहीं लड़ते है, लेकिन जो दोबारा मैदान में आशावादी बनकर लड़ते है, उनको सफलता ज़रूर मिलती है।
आपको एक छोटी सी कहानी बताने जा रहा हुं, जिससे ज्ञात होगा की आशावादी सोच का परिणाम कैसा होता है ? कैसे आपको विजय दिलाती है एक आशावादी सोच ? कितना ज्यादा असरदार होता है आशावादी और निराशावादी सोच का प्रभाव हमारे जीवन में ?
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Nirashawadi Nahi Ashawadi Bano, Optimistic and pessimistic, positive and negative thinking
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निराशावादी बनाम आशावादी
नीदरलैंड्स
में हुए एक
अध्ययन में पाया
गया, जो स्थायी
रूप से निराशावादी
हैं, वह दिल
की बीमारियों और
अन्य कारणों से
अधिक मरते हैं,
जबकि आशावादी लोग प्राकृतिक
रूप से ही मरते है। ये
केवल स्वास्थ्य पर
बुरा प्रभाव नहीं
डालता बल्कि यह देश
के लिए भी
बुरा साबित हो
सकता है।
इसके
विपरीत, आशावादी विचारधारा क्रांतिकारी हो
सकता है। ये
बात लेखक और
पर्यावरणवादी एलैक्स स्टेफ्फेन ने
कही है- “जहां कोई
बेहतर भविष्य में
विश्वास न करता
हो, वहां निराशा
तार्किक विकल्प होती है। जो लोग
निराश होते हैं,
वो कुछ नहीं
बदल सकते। जहां
किसी को नहीं
लगता कि एक
बेहतर समाधान संभव
है । जो किसी
समस्या से लगातार
लाभ उठा रहे
हैं , वो सुरक्षित
हैं। जहां कोई
कार्य की संभावना
में विश्वास नहीं
करता, वहां सुधार
के लिए उदासीनता
एक बड़ी बाधा
बन जाती है।
एक बेहतर
भविष्य के लिए विश्वास या आशावादी होना सबसे
मज़बूत नीव साबित होता है।”
आप ने देखा होगा जब आपके इलाके में चुनाव का समय होता है, तो कितने ढेर सारे कण्डीडेट्स चुनाव में खड़े होते है, और पूरी ताकत से प्रचार करते है, लेकिन क्या सभी सफल हो पाते है? सिर्फ एक ही विजेता बनता है। तो क्या अगले वर्ष वह हारा हुआ कंडीडेट चुनाव नहीं लड़ता ? कुछ कंडीडेट होते है, जो निराश होकर नहीं लड़ते है, लेकिन जो दोबारा मैदान में आशावादी बनकर लड़ते है, उनको सफलता ज़रूर मिलती है।
आपको एक छोटी सी कहानी बताने जा रहा हुं, जिससे ज्ञात होगा की आशावादी सोच का परिणाम कैसा होता है ? कैसे आपको विजय दिलाती है एक आशावादी सोच ? कितना ज्यादा असरदार होता है आशावादी और निराशावादी सोच का प्रभाव हमारे जीवन में ?
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आशावादी विचारधारा से पराजित राजा भी हुआ विजयी
एक
समय की बात
है एक राजा
को उसके दुश्मनों ने
हरा दिया। उसके
राज्य मे धन
व जन की
अपार हानि हुई।
संगी-साथी भी
छूट गए। अब
सिर्फ उसका जीवन बचा
था। जान बचाने
के लिए वह
भागा फिर रहा
था। वह भागते
हुए एक गुफा
में जा छिपा और अपनी
मौत का इतंजार
करते हुए सोच
रहा था, दुश्मनों
की तलवार पल
भर में मेरा
काम तमाम कर
देगी। एक बार तो राजा एकदम निराश हो गया था कि तभी राजा ने देखा एक मकड़ी गुफा
के दरवाजे पर
जाला बनाने में
व्यस्त थी। वह
कई बार कोशिश
करती, पर नाकाम रहती,
लेकिन फिर से
उठकर जाला बनाने
लग जाती।
राजा ने
सोचा यह मकड़ी बेकार
कोशिश कर रही
है, बिना किसी आधार
के जाला भला
कैसे बना पाएगी।लेकिन आश्चर्य तब हुआ राजा को जब मकड़ी ने गुफा के मुंह
पर जाला का एक तार अटका ही दिया। बस
फिर एक के
बाद एक तार अटकटे चले गए
और देखते-देखते
जाला तेजी से
बुना जाने लगा।
थोड़ी देर में
पूरी गुफा के
मुंह पर जाला
तैयार हो गया।
इसी दौरान राजा को ढूंढते हुए शत्रु के सिपाही
वहां आ पहुंचे,
लेकिन गुफा के
मुंह पर मकड़ी
का जाला बना
देख वापस लौट
गए। करीब आई
हुई मौत तो
वापस चली गई
पर राजा को
एक गहरे विचार
में छोड़ गई। राजा के दिमाग में निराशावादी विचार के ऊपर मकड़ी ने आशावादी विचार को पैदा कर दिया था। उस मकड़ी ने राजा को सोचने पर मजबूर कर दिया की जब मकड़ी
बार-बार गिरकर
भी निराश और
परास्त नहीं हुई
तो मैं इंसान
होकर भी क्यों
डर रहा हूँ ? मै क्यों निराश हो रहा हूँ ? मैं भी जरूर अपने
दुश्मनों को परास्त
कर सकता हूँ। इस मकड़ी
ने मेरा संकल्प
मजबूत कर दिया
है और मुझे आशावादी बना दिया है ।
यह सोचते
ही वह गुफा
से बाहर निकल
गया। अब वह
एक बदला हुआ आदमी था। जिसके अंदर से निराशा नाम की चीज़ गायब हो चुकी थी और आशा की किरण दिखाई दे रही थी। उस राजा ने अपने साथियों को
एकत्र किया और
अंत में दुश्मनों
पर जीत हासिल
की।
राजा ने तो निराश होकर अपने आप को मरा हुआ ही मान लिया था की जल्द ही वह दुश्मनों के हाथों मारा जायेगा। लेकिन आप ने देखा की एक आशावादी सोच के बलबूते वह पुनः विजयी बना। ये है ताकत आशावादी बनने का।
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खरगोश और कुत्ते की विचारधारा का परिणाम
इसी तरह की एक और छोटी सी कहानी है- किसी
गांव में एक किसान रहता था, जिसे जानवरों से बहुत प्रेम था। उसके घर में बहुत सारी गाय
और भैंस थीं, जिनका दूध बेचकर
वो अपना जीवन
यापन करता था।
उसके पास एक
पालतू कुत्ता और
एक खरगोश भी
था।
एक
दिन उसके मन
में कुछ विचार
आया और वह
बाजार गया। वहां
से एक गाजर
एवं एक हड्डी
लेकर आया। वह
खरगोश और कुत्ते
को खेत ले गया। उसने खेत में
बहुत सारे छेद
कर दिए और
एक छेद में
हड्डी एवं गाजर
छिपा दी। किसान ने
खरगोश और कुत्ते
से कहा कि
जो पहले हड्डी या गाजर ढूंढेगा, उसे
शाम को दावत
मिलेगी।
खरगोश
बहुत ही आशावादी
विचार रखता था, इसलिए खरगोश को उम्मीद थी
कि वह गाजर
को ढूंढ ही लेगा । वही दूसरी तरफ कुत्ता बहुत
ही निराशावादी था । वह मन ही
मन बोला कि
यह क्या मज़ाक
है? इतने बड़े
खेत में मैं
कैसे हड्डी को
ढूढूंगा ? यही सोचकर
कुत्ता खेत में
बने एक बड़े
से गड्ढे में
बैठ गया।जबकि खरगोश पूरे जोश
के साथ खेत
में गाजर ढूंढने
में लग गया।
खरगोश
को उम्मीद थी
कि वह सारे
छेद में देखेगा, आखिर कहीं तो
गाजर होगी ही।खरगोश आशावादी विचार के साथ घंटों खेत में
चक्कर लगाता रहा। बार-बार खेत
में बने छेदों
को देखता। धीरे-धीरे उसने पूरे
खेत के सारे
छेद में जाकर
देख लिया, लेकिन
कहीं गाजर नहीं
मिली। तभी उसके
दिमाग में विचार
आया और वह
उस गड्ढे के
पास गया जहां
कुत्ता आराम से
लेता हुआ था। उसी बड़े से
छेद में गया
और खरगोश गाजर
ढूंढने लगा और
संयोग से वहीं
उसे गाजर और
हड्डी दोनों छिपी
मिल गयीं। अब
तो खरगोश की
ख़ुशी का ठिकाना
नहीं था।
दोस्तों
आपने देखा कि
कुत्ता जहाँ आराम
से सो रहा
था, वही से
हड्डी और गाजर
मिली, लेकिन देखिये
कुत्ता तब भी
उनको नहीं ढूंढ
पाया। क्यों? क्योंकि
वह निराशावादी विचार का होने के कारण यह मानकर बैठ
गया था कि इतने
बड़े खेत में
खोजना बहुत मुश्किल
है। उसकी निराशावादी
सोच ने उसे
बड़े आराम से
हारने दिया। जबकि वही दूसरी तरफ आशावादी विचार के कारण खरगोश को सफलता मिल गयी।
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सारांश-
हमारे अंदर सभी वो ताकत या हिम्मत मौजूद है, जिससे हम अपने जीवन में ख़ुशियाँ या सफलता हासिल कर सकते है, लेकिन सिर्फ हमारी निराशावादी सोच के कारण उसे हासिल नहीं कर पाते है। अगर हम किसी काम में असफल हो भी जाए तो भी निराश होने के बजाय उस कार्य को पुनः प्रारम्भ करे। किसी कार्य को आशावादी विचार धारा के साथ स्वीकार करें न की निराशावादी विचार के साथ।
महाभारत
में,
राजा यक्ष
युधिष्ठिर से पूछते
हैं कि- "उनके
अनुसार जीवन का
सबसे अधिक जिज्ञासु
पहलू क्या है?"
युधिष्ठिर जवाब देते
हैं, “मृत्यु जीवन
की एक सच्चाई
है। हर कोई
किसी को मरता
हुआ देखता है
फिर भी जीवित
रहता है जैसे
कि वह अमर
है।”
क्या ये
आशावाद नहीं ?
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