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अवसाद या डिप्रेशन (Depression): लक्षण, प्रभाव एवं बचाव

अवसाद या डिप्रेशन (Depression)

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डिप्रेशन या अवसाद आधुनिक समाज में एक बहुप्रचलित मानसिक रोग की श्रेणी में आता है। अवसाद (Depression) का तात्पर्य मनोविज्ञान क्षेत्र में मनोभावों (Feelings) संबंधी दुख से होता है।


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जीवन से आस्था उठ जानाजीने का नकारात्मक रवैयास्वयं से अनुकूलन में असमर्थता या यूँ कहें कि  गाड़ी का पटरी से उतर जाना। अवसाद (Depression) की अवस्था में व्यक्ति स्वयं को बहुत लाचार और निराश महसूस करता है।बड़े तो बड़े, बच्चे तथा युवा भी तेजी से इस रोग का शिकार हो रहे हैं। पढ़ाई का अत्यधिक बोझ, घर पर होमवर्क का टेंशन, माता-पिता द्वारा बच्चे को स्कूल में कम अंक मिलने पर डांटना, बच्चों को अपनी रुचि अनुरूप कार्य करने से रोकना आदि मुख्य कारण हैं। संबंधों में उसके द्वारा उग्र स्वभाव, गाली-गलौच व अत्यधिक शंका करना इसमें शामिल होता है. 

अवसाद किस में पाया जाता है ?

नवजात शिशु से लेकर बुजुर्गों तक में अवसाद देखा गया है। बच्चो और व्यस्कों में भी डिप्रेशन की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। तनाव युक्त जीवन, अत्यधिक महत्वकांक्षी होना इन्हें और बढ़ाता है। मुख्यतः चालीस वर्ष को मीन ऐज (Age) माना गया है डिप्रेशन की शुरुवात के लिए, किंतु यह हर उम्र में हो सकता है। W.H.O. के अनुसार हर 6 महिला में 1 और 8 पुरुषों में 1 (एक) डिप्रेशन का शिकार है।


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घर में अन्य सदस्यों को अवसाद (Depression) की बीमारी होने से भी यह परेशानी महिलाओं को जल्दी पकड़ती है, क्योंकि घर से लगाव पुरुषों के मुकाबले उन्हें ज्यादा होता है। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अवसाद ज्यादा खतरनाक होता है। हालाँकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है.

विश्व में आठ लाख (800000) लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, W.H.O.के डाटा के अनुसार इनमें से  1,35,000 (17%) हमारे भारतवासी हैं। हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या का शिकार हो जाता है और हर 3 सेकेंड में एक व्यक्ति प्रयास करता है मरने के लिए। ये डाटा विश्व स्तर पर W.H.O. (वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन) द्वारा दिया गया है।

गाँव या देहात में रहने वालों में शहरों के मुताबिक अवसाद अधिक देखा जाता है।
शिक्षितों में अशिक्षितों के मुताबिक अधिक मात्रा है।
गरीबों और धनवानों में इसकी मात्रा बराबर की है।

कारण (Factors)-

संभवतः समय के साथ बढ़ते घरेलू विवादआपसी मतभेदकार्य की व्यस्ततादूसरों से आगे निकलने की होड़अपने मनोनुकूल कार्य का  होनादफ्तर में अपने से ऊपर बैठे अधिकारी द्वारा तिरस्कृत किया जान,बढ़ते तनाव  गलत संगत की वजह से किसी नशे का आदी हो जानाबदलते समय के अनुसार अपनी सोच में बदलाव  लानालंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित रहना तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण अपने  अंदर की प्रतिभा तथा क्षमता को नजरअंदाज कर अपने आपको दूसरों से हीन समझना डिप्रेशन के मुख्य कारणों में से है।


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अवसाद के लक्षण | Symptoms of Depression in Hindi


इससे ग्रसित व्यक्ति में ऊर्जा तथा उत्साह की कमी, कार्य के प्रति विमुखता, भूख तथा नींद में कमी, जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, किसी भी नए कार्य या जिम्मेदारी का निर्वाह करने में डर महसूस करना, शरीर के वजन में कमी होना, शरीर में थकान व दर्द का होना, एकाग्रता की कमी होना तथा कभी-कभी मन में आत्महत्या की भावना पैदा होना आदि इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। कई बार शारीरिक लक्षण, मानसिक लक्षणों की अपेक्षा ज्यादा प्रबल होते हैं।

मनोदशा (Mood)-

चिंता, उदासीनता, असंतोष, खालीपन, अपराध बोध, निराशा, मिजाज बदलते रहना, घबराहट अथवा सुख प्रदान करने वाले कार्यों से भी सुख की अनुभूति ना होना। उसके मन में अपने प्रति संशय उन्पन्न होने लगता है जिसके कारण उसकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है. इस अवस्था में व्यक्ति में अपना भला बुरा सोचने की क्षमता समाप्त हो जाती है और वह घृणित से घृणित कार्य जैसे आत्महत्या, हाथ की नसें काटना, फाँसी लगाना इत्यादि कार्य करके स्वयं को ही हानि पहुँचाता है। अकेलापन उसे अच्छा लगता है। किसी की भी बात भले ही मजाक में कही गई हो उसे तीर की तरह चुभ जाती है. हर बात को अपने से जोड़ लेता है और सब पर संदेह करता है। बीती बातों को याद करके अकेले में रोता है। वह अपने मन की बात किसी से नही बताता क्योंकि उसे अपने परम हितैशियों पर भी विश्वास नहीं होता, न ही ईश्वर पर, वह हर दम अपनी परिस्थिति के लिए उन्हें कोसता रहता है।
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कुछ मरीज वाचाल होते हैं, क्रोध व्यक्त करते हैं, चिड़चिड़ापन दिखाते हैं, अत्यधिक गुस्सा या नफरत प्रगट करते हैं और कुछ अन्तर्मुखी होते हैं उनके लिए अवसाद (Depression) बेहद गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर देता है, एकांकी जीवन शैली को अपनाकर वे गहन मौन में चले जाते हैं और यह अवस्था उनकी हृदय गति को बिलकुल कम कर देती है, जिससे कभी-कभी सोते-सोते उनकी मृत्यु भी हो सकती है। 

निद्रा (Sleep)-

साधारणतः एक व्यस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 7-8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है, किंतु अवसाद (Depression) में व्यक्ति अपनी निद्रा का लाभ नहीं ले पाता है । उसकी नींद सुबह बहुत जल्दी खुल जाती है । नींद के बाद भी उसे थकान और आलस्य महसूस होता है। कुछ मरीजों में अत्यधिक नींद भी पाई गई है पर उसमें भी वह थका हुआ ही उठता है. व्यक्ति, खुद को तरोताजा महसूस नहीं कर पाता है । वह हमेशा थकान और बेचैनी का अनुभव करता है। 90 प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है।


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ज्ञान-संम्बधी (Cognitive)-

एकाग्रता की कमी, हर कार्य में धीमी गति का होना, आत्महत्या के विचार, कुछ याद न रहना या सामान्य चीजें भूलना मुख्य हैं। कुछ नई कुछ पुरानी बातें अचानक याद आना और खुश हो जाना। ज्यादातर डिप्रेशन के मरीज़ बाद में भूलने की बीमारी या एलजाइमर (Alzheimer) से ग्रस्त हो जाते हैं। वह ध्यान लगा के कोई काम करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं।

नशा (Drugs)-

कुछ लोग नशा करने लगते हैं कि वे हरदम वास्तविकता से दूर रहें। क्योंकि उनमें इसे स्वीकार करने की शक्ति नहीं होती। हम कह सकते हैं कि वे डरपोक हो जाते हैं। जीवन के उतार चढ़ाव को बर्दाश्त करने की क्षमता उनमें नहीं होती। कैफीन (कॉफी), चाय, जंक फूड इत्यादि से भी गलत प्रभाव पड़ता है। सिगरेट (धूम्रपान) अथवा तंबाकू सेवन आदि भी गलत प्रभाव डालते हैं.


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प्रभाव (Effects of Depression)-

अवसाद (Depression) लाइलाज रोग नहीं है बल्कि इसका इलाज संभव है। इसके पीछे जैविक, आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं जैवरासायनिक असंतुलन के कारण भी अवसाद (Depression) हो सकता है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं।


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जैसा की आये दिन समाज में देख रहे होंगे। अभी हाल में ही एक मशहूर फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के द्वारा भी आत्महत्या ही किया गया जो की अवसाद (Depression) के रोगी थे। इसलिए ऐसे रोगी के परिजनों को सजग रहना चाहिए और उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है या अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है या निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। उसे खुश रखे रखें और हँसाने की कोशिश करें।


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बचाव (Precautions)-

कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और सकारात्मक सोच रखें। अवसाद (Depression) से बचने के उपायों में व्यस्त रहकर मस्त रहना, अपने लिए समय निकालना, संतुलित आहार सेवन करना और सामाजिक मेलजोल बढ़ाना मूल उपाय हैं। व्यक्ति को खुशहाल वातावरण दें। उसे अकेला न छोड़े तथा छेड़छाड़ कतई न करें। उसकी रुचियों को प्रोत्साहित करें, उसमें आत्मविश्वास जगाएँ। कारण जानने का प्रयत्न करें। 

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अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है। खाली रहने की स्थिति में फालतू नहीं बैठें, अपितु उस समय में अपनी रुचि का कोई कार्य या किसी पत्रिका, पुस्तक आदि को पढ़े अथवा अपने मित्रों के साथ किसी बौद्धिक विषय पर बातचीत करें।

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आहार (Nutrition)-

एक पुरानी कहावत है, जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन। भोजन में जरुरी पोषक तत्व न होने से अवसाद (Depression) की स्थिति और बिगड़ जाती है। सही आहार अवसाद (Depression) को ठीक करने में ज्यादा सहायक सिद्ध होती है। पौष्टिक आहार से 70 -90% मनोविकारों में लाभ मिलता है।


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कुछ सामान्य आहार परिवर्तन-
  • मैदे की जगह आप आटे (गेंहू का आटा) का प्रयोग करें ये अधिक हल्का होता है।
  • चीनी की जगह शहद या गुड़ का प्रयोग करें।
  • नट्स, बीन्स और फल एक साथ आहार में शामिल करें।
  • लो फैट क्रीम चीज (Cheese) का प्रयोग उत्तम होगा।
  • प्रयास करें ताज़ा और शुद्ध भोजन करें और सही समय पर भोजन कर लें।
  • कैफीन, शराब, धूम्रपान, तम्बाकू इत्यादि से बचें।

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योग और प्राणायाम (Yoga and Pranayam)-

अवसाद (Depression) के उपचार के लिए योगासन में प्राणायाम बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। अनलोम विलोम, भ्रामरी प्राणायाम, बंध और सूर्य नमस्कार तथा योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। घर के बाहर निकलें, प्रतिदिन सैर पर जाएं और व्यायाम को अपने जीवन में स्थान दें. तनाव अपने आप आपसे दूर हो जाएगा। किसी योग गुरु या मनोचिकित्सक के मार्गदर्शन में ही इसका पालन करें। यह अति प्रभावशाली और बहुत लाभदायक है। ध्यान करने से मरीजों को काफी लाभ होता है। ध्यान करने से मस्ती, प्रसन्नता शांति बनी रहती है और साथ ही शरीर तंदुरुस्त होता है।


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सारांश -

दोस्तों कुल मिलकर अपने आपको हर परिस्थिति में खुश रखिये। इस दुनिया में सभी समस्याओं का समाधान है। अपने नजरिया को बदलें।  परिस्थितियों से लड़ना सीखिए न की अपनों से बैर रखें। अगर आप विषम परिस्थि में भी खुद को सकारात्मक रखते है तो डिप्रेशन की संभावना न के बराबर रहेगी।  छोटी छोटी बातों को दिल पर न लगाए।  अपनों की गलतियों को माफ़ करना शुरू कर दीजिये। जब आप माफ़ कर देना शुरू कर देते है तो परिस्थितिया सकारात्मक रूप लेने लगती है।  आपके दिमाग पर बुरा असर नहीं पड़ता है जिससे आप डिप्रेशन की आगोस में आने से बच जाते है। अगर डिप्रेशन के शिकार हो भी जाये तो जीवन का अंत या इस प्रकार के कोई गलत कदम उठाने से पहले अपने उन माँ बाप के बारे में जरूर सोचना की उनके ऊपर क्या गिजरेगी जब उन्हें मालुम चलेगा की उनका दिल का टुकड़ा उन्हें छोड़ कर चला गया। वो दिल का टुकड़ा जिसे थोड़ा सा भी चोट लगने पर कैसे बेचैन हो जाते थे।  अपने उस जीवन साथी के बारे में सोचना जो सिर्फ आपके साथ जीवन जीने का सौगंध लिया था।  अपने बच्चो के बारे में जरूर सोचना की जो आपके बगैर कुछ पल नहीं रह पाते आपके हमेसा के लिए चले जाने से कैसे जी पाएंगे।

" खुश रहिये , स्वस्थ रहिये और अपने लिए नहीं तो अपनों के लिए खुशियाँ बिखेरिये। " 


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